आधे से कुछ ज्यादा है
पूरे से कुछ कम,
कुछ जिंदगी..
कुछ गम..
कुछ इश्क... कुछ हम..!!
काश हमारा भी कोई रश्के-क़मर होता,
हम भी नजर मिलाते हमें भी मज़ा आता।
कसूर उनका नहीं हमारा
ही था...
हमारी चाहत ही इतनी थी
कि उनको गुरुर आ गया..
बहुत अच्छी खासी
प्यार भरी चैटिंग
हुआ करती थी उससे.
फिर एक दिन
उसने, चलो अब “सोती हूँ”
की जगह
“सोता हूँ” लिख दिया.
मान लिया है मैंने..
नहीं आता मुझे मुहब्बत जाताना..
नादाँ तो तुम भी नहीं..
समझ ना सको शायरियों
में जिक्र तुम्हारा...!!
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। - हरिवंशराय बच्चन