मान लिया है मैंने..
नहीं आता मुझे मुहब्बत जाताना..
नादाँ तो तुम भी नहीं..
समझ ना सको शायरियों
में जिक्र तुम्हारा...!!
अरे बेपनाह मोहब्बत की थी हमने तुझसे ओ बेवफा !
तुझे दुःख दूं ये न होगा कभी खुद मर जाऊं यहीं ठीक है !!
वह अपने करम उँगलियों पर गिनते हैं,
पर ज़ुल्म का क्या जिनके कुछ हिसाब नहीं
हम दूर तक यूँ ही नहीं पहुंचे ग़ालिब ,
कुछ लोग कन्धा देने आ गए थे...
तुम समझ लेना बेवफा मुझको, मै तुम्हे मगरूर मान लूँगा
ये वजह अच्छी होगी , एक दूसरे को भूल जाने के लिये
“इन हसीनो से तो कफ़न अच्छा है,
जो मरते दम तक साथ जाता है,
ये तो जिंदा लोगो से मुह मोड़ लेती हैं,
कफ़न तो मुर्दों से भी लिपट जाता है.”