अनजान से रास्तों पर
अकेली जा रही हूं
तेरी मोहब्बत में पागल होकर
दर-दर की ठोकरें खा रही हूं.
हमने अपनी यादों के बागीचे में
तेरी यादों के पौधे को सींच कर रख रखा था
पर आप हमे अपनी यादों के बगीचे में
लगी गंदी घास समझ कर भूल गये।
यहाँ सब खामोश हैं कोई आवाज़ नहीं करता,
सच बोलकर कोई, किसी को नाराज़ नहीं करता।
कितना जगमगाओगे आसमान ऐ खुदाअब धरती के सितारे ख़त्म हो गए है
वो बात -बात पे नराज़ हो जाते है,
और इधर बात करने का वक़्त नहीं l
रविवार का दिन,
सुबह का मौसम,
एक प्याली चाय,
तुम्हारा ख्याल,
जब तुम साथ होती हो..
बस इतना ही अच्छा लगता है l❤❤