बे-ख़्वाबी कब छुप सकती है काजल से भी,
जागने वाली आँख में लाली रह जाती है!
दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी
चौंक उठते हैं कहीं तूने पुकारा ही न हो
मोहब्बत में यारों हमनें क्या-क्या नहीं लूटाया…
उन्हें पसंद थी रोशनी हमनें खुद को जला दिया…
वो रोज़ देखता है डूबते सूरज को इस तरह,काश... मैं भी किसी शाम का मंज़र होता।
कोई तुमसे सीखे.....मौजूद रहना मुझ में !!
"सारे गुनाहों का हिसाब,क्या एक दिन में ले लेगा,ऐ खुदा अभी बक्श दे,कुछ काम जरुरी बाकी है l"