कांटे तो नसीब में आने ही थे ।
फूल जो हमने गुलाब का चुना था ।
अंधेरों का डर यहाँ किस को है….
डर तो उसका है जो उजालो में ना हो सका!
यादों की शाल ओढ़ के आवारा-गर्दियाँ
काटी हैं हम ने यूँ भी दिसम्बर की सर्दियाँ
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहींतू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो।
साँसों में तेरी खुशबु है, दिल में तू धड़कती है,
कैसे बताऊ तुझको मैं, तू कितना याद आती है।