अंधेरों का डर यहाँ किस को है….
डर तो उसका है जो उजालो में ना हो सका!
तैरना तो आता था हमें मुहब्बत के समंदर में
लेकिन जब उसने हाथ ही ना पकड़ा तो डूब जाना ही अच्छा था
“शाम खाली है जाम खाली है,ज़िन्दगी यूँ गुज़रने वाली है,
सब लूट लिया तुमने जानेजाँ मेरा,मैने तन्हाई मगर बचा ली है”
कश्ती है, पुरानी मगर दरिया बदल गया।
मेरी तलाश का भी जरिया बदल गया।
ना शक्ल बदली, ना ही बदला मेरा किरदार,
बस लोगों को देखने का नजरिया बदल गया।
तरस आता है मुझे अपनी मासूम सी पलकों पर,जब भीग कर कहती है की अब रोया नहीं जाता।