गजब किरदार है मोहब्बत का,
अधूरी हो सकती है मगर खत्म नहीं.
कांटों से घिरा रहता है चारों तरफ से फूल
फिर भी खिला रहता है, क्या खुशमिजाज़ है
यहाँ सब खामोश हैं कोई आवाज़ नहीं करता,
सच बोलकर कोई, किसी को नाराज़ नहीं करता।
"काश! कोई इस रात की सहर रोक लेता,आज फिर मुझे कोई घर रोक लेता l"
"बड़ी तेजी से इंसान -इंसान को भूल रहा था,
ये ठोकर भी जरुरी था,थोड़ा ब्रेक लगाने को l"
तुम भी बदल गये,
हम भी बदल गये,
तब जाके ये ज़माना बदला..