दिल की धड़कन को कौन समझेगा।
मेरी उलझन को कौन समझेगा।
एक बेटी नहीं अगर घर में
घर के आंगन को कौन समझेगा।
मेरी यादों में आती रही रात भर,सोते -सोते जगाती रही रात भर lकहता किससे और किससे मैं क्या बोलता,प्यार से वो रुलाती रही रात भर l
तुम्हें कैसे लगा मैं फ़ोन नम्बर भूल जाऊँगामुझे तो रोल नम्बर भी तुम्हारा याद है अब तक।
अगर उतर जाते खरे तेरी हर उम्मीद पे,तो इल्ज़ाम बदल जाने का मेरे नाम होता
जो गुज़ारी न जा सकी हमसेहमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।
“हर वक्त मुस्कुराना फितरत हैं हमारी,
आप यूँ ही खुश रहे हसरत हैं हमारी,
आपको हम याद आये या ना आये,
आपको याद करना आदत हैं हमारी.”