कैसे एक राजा बन गया गिरगिट और भगवान श्री कृष्ण ने उसका उद्धार किया ?

कैसे एक राजा बन गया गिरगिट और भगवान श्री कृष्ण ने उसका उद्धार किया ?

भगवान श्री कृष्ण के चमत्कार की लीलाएं हूँ बालकाल से ही सुनते आ रहे है. भगवान श्री कृष्ण लीलाधर थे उन्होंने अपने बचपन में कैसे कितने सारे राक्षसों का उद्धार किया, कैसे उन्होंने कलियाँ नाग को समझाया और किस प्रकार से पूतना नाम की राक्षसी का वध उन्होंने किया.  ये तमाम कथायें हमने सुनी और और कई बार नाटक या टीवी सीरियलस में देखी भी है. 

लेकिन एक ऐसा भी प्रसंग है जिसे बहुत सारे लोगों के कभी नहीं सुना. एक कहानी ऐसी है कि एक गिरगिट भगवान श्री कृष्ण के स्पर्श मात्र से ही राजा बन गया. वो कहानी इस प्रकार है,..... 

द्वापर युग में द्वारका नगरी में एक बार कई सारे बालक जंगल में पानी की तलाश में भटक रहे थे और उन्हें कई पानी का कोई स्रोत नहीं मिला. तो वो सब और दूर निकल आये. तभी उन्हें एक कुंआ दिखा दिया. जब उन्होंने कुंए में झाँक कर देखा तब उन्हें उसमें एक गिरगिट दिखाई दिया. उन सभी ने उसे बाहर निकालने की कोशिश की लेकिन वो गिरगिट इतना बड़ा और भरी था कि उनसे नहीं निकल पाया. उन सभी बालकों ने तुरंत इसकी सूचना द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण को दी. श्री कृष्ण उन बालकों के साथ उस जगह पर आ गए और उस गिरगिट वो अपने एक हाथ से ही निकाल दिया. जैसे ही श्री कृष्ण ने उस को छुआ वो तुरंत एक बलवान और सुंदर राजा बन गया. सभी बालक उसे देखकर हैरान हो गए. उसने भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया, श्री कृष्ण ने उस राजन का परिचय पूछा और उसके गिरगिट बनने की कहानी भी सुनी. 

राजा ने कहा, हे वासुदेव श्री कृष्ण मैं राजा नृग हूँ, पूर्व जन्म में मैं बहुत ही दान और धर्म के कार्य करता था. मैं हर रोज 1000 गाये ब्राह्मणों को दान करता था. एक दिन अनजाने में मेरे गौशाला में एक ब्राह्मण की गाय आकर छिप गई और मेरे सेवक ने उसे भी उन 1000 गायों में शामिल कर दिया जिन्हें में उस दिन दान करने वाला था. इसी कारण मैंने अनजाने में उस गाय को भी एक ब्राह्मण को दान कर दिया. वो गाय एक ऐसे ब्राह्मण की थी जो राजाओं से दान नहीं लेता था. कुछ दिनों बाद उसने देखा कि उसकी गाय एक ब्राह्मण के घर पर है और इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा होने लगा. बात बढ़ने पर दोनों न्याय के लिए मेरे पास आये. जब मुझे झगड़े का कारण पता चला तो मैं धर्म संकट में आ गया. मैंने जिस ब्राह्मण को दान दिया था उससे बहुत अनुनय विनय किया कि मैं आपको इसके बदले में दस हज़ार गाये दान दे दूंगा लेकिन आप कृपया करके इस गाय को इन्हें दे दीजिये लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं मानी और वहाँ से चले गए. फिर मैंने उस महात्मा से प्रार्थना की लेकिन उन्होंने भी मेरी प्रार्थना स्वीकार नहीं की और मुझे चोर कहते हुए वहाँ से चले गए.

कालातंर में जब मेरी मृत्यु हुई तो मैं यमलोक गया और वहाँ पर धर्मराज ने कहा, राजन तुम्हारे दो पाप है जिनकी सजा तुम अभी भुगत सकते हो या पहले पुण्य कर्मों से अर्जित सुख-सविधाओं का आनंद लेना चाहते हो? निर्णय तुम्हारा है.  

मैंने दोनों पाप सुने, धर्मराज ने कहा, हे राजन तुमने एक राजा के रूप में वचन दिया था कि तुम अपने राज्य में किसी के साथ अन्याय नहीं करोगे और हर किसी की सम्पत्ति को रखवाली करोगे जबकि तुमने उस ब्राह्मण की सम्पति को ही अनजान में दान दे दिया जिससे तुम्हारा वचन टूट गया और दूसरा ये की तुमने एक ब्राह्मण की सम्पत्ति चुराई है जिसकी वजह से तुम्हें दो पापों का भागी बनना पड़ रहा है. इसके बाद मैंने यमराज से पाप कर्मों की यातना भोगने की अपनी मंशा सुनाई और उसके बाद में एक गिरगिट के रूप में यहाँ आ गिर. 

तब श्रीकृष्ण ने कहा, किसी भी समझदार व्यक्ति को ब्राह्मण की कोई भी सम्पत्ति नहीं चुरानी चाहिए नहीं तो उसके पाप से उसके समूल कुल का विनाश हो जाता हैं. राजा नृग भगवान की कृपा से सीधा स्वर्गलोक चले गए और इस प्रकार उनका उद्धार हुआ.