कुछ अल्फाज के सिलसिले से बनती है शायरीऔर कुछ चेहरे अपने आप में पूरी गजल होते हैं
कुछ अल्फाज के सिलसिले से बनती है शायरी
और कुछ चेहरे अपने आप में पूरी गजल होते हैं
रूह मुझे दो, जिस्म भले ही उसे देदो।
जिस्म तो खो दोगे जनाब, फिर भी रूह तो महफ़ूज़ होगी हमारे पास।
सुबह की चाय,घर की बालकनीतुम्हारे य़ादों का साथ खास है lयही सिलसिला है रोज का ,तुमसे ही चाय की मिठास है l
दिल दुखाया करो इजाजत है,
भूल जाने की बात मत करना।
"कभी मेरे जाने पे लड़ती है वोकभी खुद तन्हा छोड़ जाती है,