सुन पगली
अकेले हम ही शामिल नहीं है इश्क की जुर्म में
जब नज़रे मिली थी तो तू भी मुस्कुराई थी
कांटे किसी के हक में किसी को गुलो-समर,
क्या खूब एहतमाम-ए-गुलिस्ताँ है आजकल।
माना आपको प्यार की कदर नहीं थी मगर दिल तो रख लिया होताइतनी जल्दी भूल गए उस प्यार को अरे थोड़ा सब्र तो कर लिया होता।
माना आपको प्यार की कदर नहीं थी मगर
दिल तो रख लिया होता
इतनी जल्दी भूल गए उस प्यार को अरे
थोड़ा सब्र तो कर लिया होता।
हँसना-हँसाना चलता रहेगा ,रूठना -मनाना चलता रहेगा lबस आप रहना साथ ,ये खूबसुरत अफसाना चलता रहेगा l
चाहने वाले तो मिलते ही रहेंगे,
तुझे सारी उम्र . . !
बस तू कभी जिसे भूल न पाए,
वो चाहत यकीनन हमारी होगी।
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के