इजहार-ए-मोहब्बत पे अजब हाल है उनका,आँखें तो रज़ामंद हैं लब सोच रहे हैं।
हूँ भीड़ में ,पर भीड़ का हिस्सा ना हो पाया lज़हन में थी तुम,कोई दूसरा किस्सा ना हो पाया l
बेवज़ह की बातों में उलझ जाता हूं,वक़्त की रेत पर फिसल जाता हूं lमुझे मेरी खबर कहाँ रहती है अब,क्योंकि मैं अब उसके दिल में रहता हूं l
पहली नशा मेरी अच्छी थी चाय है
या चाय ही रहेगी हर बात में मोहब्बत को बीच में ना लाओ
Good morning
"वो चाहते थे कि हम उनके पीछे रहे,हम तो बस साथ चलने के शौकीन थे l"