ख़ुशियों की ख़ातिर हमने कितने क़र्ज़ उतार रक्खे हैं
ज़िंदगी फिर भी तूने हमपे कितने दर्द उतार रक्खे हैं
मासूम अगर होता तो सब मिलके लूट लेते
जाने किस अपने ने मेरे दुश्मन उतार रक्खे हैं
रात चुपचाप दबे पाँव चली जाती हैरात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहींकांच का नीला सा गुम्बद है, उड़ा जाता हैख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है चाँद की किरणों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती हैऔर सन्नाटों की इक धूल सी उड़ी जाती है काश इक बार कभी नींद से उठकर तुम भी हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है
हम तो बिछड़े थे तुमको अपना अहसास दिलाने के लिए,मगर तुमने तो मेरे बिना ही जीना सीख लिया..
सुना है प्यार करने वाले बड़े अजीब होते हैखुशी के बदले गम नसीब होते है|मेरे दोस्त मोहब्बत ना करना कभी...क्योकि प्यार करने वाले बड़े बदनसीब होते है|