छीन ले मुझसे मेरा सब कुछ,मेरे अंदर का जहां रहने देना,तेरे महलो की ख्वाहिश नहीं,अंधेरा टूटा मकान रहने देना l
बड़ा नेक रिश्ता है फेफड़ों का पेड़ों के साथजो एक का उत्सर्ग है वही दूसरे का आहार
"उसे पाने की कोशिश में, खुद को खो चुका हूँ,कई बार टूटे है सपने, मैं कई बार रो चुका हूँ l"
सूरज रज़ाई ओढ़ के सोया तमाम रात
सर्दी से इक परिंदा दरीचे में मर गया
वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
मैं नहीं तो कोई और तेरी ख़्वाबों में आया करेगा,
रूठेगी तू और तुझे मनाया करेगा,
मगर क्या भरोसा है उसका
क्या वो मेरी तरह ही अपना वादा निभाया करेगा?