वो रोज़ देखता है डूबते सूरज को इस तरह,काश... मैं भी किसी शाम का मंज़र होता।
स्त्री के आँसू अंधेरे में भी दिखते हैं,मगर पुरूष के आँसू उसके तकिये को भी नहीं दिखाई देते ।
कोई तुमसे सीखे.....मौजूद रहना मुझ में !!
चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैंउन सारी जगहों परजहाँ बोलना ज़रूरी था!
ऐसे उसका ख़त कई बार पढ़ता हूँ,जैसे मैं इश्क़ की गली से गुजरता हूँ lहर बार रुकता हूँ उसी शब्द पे,जो बताता की, मैं उसके दिल में रहता हूँ l
मुझे नशे के लिए शराब नहीं चाहिए,बस तेरा आँखों में डूबना ही काफी है lअब दिन-रात बहका फिरता हूँ नशे में,मोह्हबत में यूँ डूबना ही काफी है l