तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे
तू किसी और ही मौसम की महक लाई थी
डर रहा था कि कहीं ज़ख़्म न भर जाएँ मेरे
और तू मुट्ठियाँ भर-भर के नमक लाई थी
कौन तुम्हारे पास से उठ कर घर जाता है
तुम जिसको छू लेती हो वो मर जाता है
जैसे तुमने वक़्त को हाथ में रोका हो
सच तो ये है तुम आँखों का धोख़ा हो
अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहींतू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो।
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है बहोत, मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते होतो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?
ये ज्योग्राफियाँ, फ़लसफ़ा, साइकोलोजी, साइंस, रियाज़ी वगैरहये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो?
घर में भी दिल नहीं लग रहा, काम पर भी नहीं जा रहाजाने क्या ख़ौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा।
रात के तीन बजने को हैं, यार ये कैसा महबूब है?जो गले भी नहीं लग रहा और घर भी नहीं जा रहा।