अब तुझसे शिकायत करना, मेरे हक मे नहीं,
क्योंकि तू आरजू मेरी थी, पर अमानत शायद किसी और की.
आपसे मिले न थे तो कोई आरजू न थी
देखा आपको तो आपके तलबगार हो गये
आरजू तेरी बरक़रार रहे…
दिल का क्या है रहे ना रहे!
लबों से छू लूँ जिस्म तेरा, साँसों में साँस जगा जाऊँ, तू कहे अगर इक बार मुझे, मैं खुद ही तुझमें समा जाऊँ।
तड़प रहीं हैं मेरी साँसें तुझे महसूस करने को, खुशबू की तरह बिखर जाओ तो कुछ बात बने।
आरजू होनी चाहिए किसी को याद करने की लम्हे तो अपने आप मिल जाते है|