भगवान परशुराम ने आखिर क्यों काटा था अपनी ही माता का गला?

भगवान परशुराम ने आखिर क्यों काटा था अपनी ही माता का गला?

भगवान विष्णु के छठे अवतार  भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि और देवी रेणुका के सबसे छोटे पुत्र थे. इन्होंने 21 बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया था. ये बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे और अपने माता-पिता के सबसे बड़े आज्ञाकारी पुत्र थे. 

कहा जाता है एक बार इन्होंने अपने पिता के कहने पर अपनी माता का गला काट दी थी, लेकिन उसके बाद उन्हें अपने पिता के वरदान से जीवित भी कर दिया था. तो आइये जानते है इस कहानी के बारे में.. 

एक दिन महर्षि जमदग्नि यज्ञ करने वाले थे तब उन्होंने अपनी पत्नी रेणुका को गंगा किनारे जल कलश भरने के लिए भेजकर खुद वहाँ पर उनका इंतज़ार करने लगे. लेकिन काफी वक्त बीत गया और रेणुका नहीं लौटी. तो महर्षि जमदग्नि बहुत क्रोधित हो गए. इधर जब रेणुका सरोवर पर पहुंची तब गंधर्व चित्ररथ कई सारी अप्सराओं के साथ जल क्रीड़ा कर रहे थे और वो उसे देखने में इतना व्यस्त हो गई कि समय का कोई ध्यान नहीं रहा. 

जब काफ़ी समय बाद वो वापस आई तब इधर महर्षि जमदग्नि जो क्रोध में वशीभूत होकर बैठे थे अपने बड़े पुत्र से तुरंत उनका गला काट देने की आज्ञा दी लेकिन वो मातृ मोह में ऐसा नहीं कर सके, तब उन्होंने अन्य दो पुत्रों को आज्ञा दिया लेकिन उन दोनों में से किसी ने भी इस आज्ञा का पालन नहीं किया तब महर्षि जमदग्नि ने उन तीनों को स्तब्ध हो जाने का श्राप दे दिया. उसके बाद उन्होंने परशुराम से कहा और उन्होंने तुरंत अपने परशु से अपनी प्रिय माता का गला काट दिया. तब उनके पिता ने उनसे कोई भी वरदान मांगने को कहा. भगवान परशुराम ने तीन वरदान मांगें, 

1. मेरी माता को तुरंत जीवित कर दीजिये 

2. उन्हें इस घटना की स्मृति याद न रहे कि उनका कभी वध भी हुआ था और वो भी उनके प्रिय पुत्र ने किया था. 

3. आप मेरे तीनों ज्येष्ठ भाइयों को श्राप से मुक्ति दे दीजिये. 

इस प्रकार भगवान परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए अपनी माता की हत्या कर दी थी जिसके कारण उन्हें मातृ हत्या का श्राप लगा था. तब उन्होंने भगवान शंकर की कड़ी तपस्या की और इस श्राप से मुक्ति पायी थी.