देखी है बेरुखी की आज हम ने इन्तेहाँ,
हमपे नजर पड़ी तो वो महफ़िल से उठ गए।
शायर तो हम
“दिल” से है….
कमबख्त “दिमाग” ने
व्यापारी बना दिया.
अब तुझे न सोचू तो, जिस्म टूटने-सा लगता है..
एक वक़्त गुजरा है तेरे नाम का नशा करते~करते !
रिश्तों की ख़ूबसूरती एक दूसरे की बातें बर्दाश्त करने में है,
ख़ुद जैसा इन्सान तलाश करोगे तो अकेले रह जाओगे।
ज़ुल्म इतना ना कर के लोग कहे तुझे दुश्मन मेरा…!!
हमने ज़माने को तुझे अपनी “ जान ” बता रक्खा है…!!