काग़ज के फूल भी महकते हैं,
कोई देता है, जब मोहब्बत से!
किसी को न पाने से जिंदगी खत्म नहीं होती
लेकिन किसी को पाकर खो देने से कुछ बाकी भी नहीं रहता|
है पेट की आग कुछ ऐसी ,दो रोटी से कहाँ बुझा पाता हूँ lघुमता हूँ दर-दर कुछ इस तरहअपने घर पर मेहमान हो जाता हूँ l
क्या तुम समझ जाओगी,क्या मैं समझा पाउँगा lइसी द्वन्द में जब रहता हूँ,कहते कहते भी,तभी चुप रहता हूँ l
कोई पूछ रहा है मुझसे अब मेरी ज़िन्दगी की कीमत,
मुझे याद आ रहा है हल्का सा मुस्कुराना तुम्हारा!