कभी बादल, कभी बारिश, कभी उम्मीद के झरने,
तेरे अहसास ने छू कर मुझे क्या-क्या बना डाला!
जुल्फें तुम्हारी परेशान करती है अक्सर,उठती है लहरें समंदर की तरह !!
ज़िस्म के ज़ख्म हो तो मरहम भी लगाएं,
रूह के नासुरों का हकीम मिलता नहीं हमें!
कभी कभी वक़्त के साथ सब ठीक
नहीं सब ख़तम हो जाता है...
एक उसे पाने की,एक उसे भुलाने की,कोशिश बेकार करता हूँ l
यूं तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैंमिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं