रोज़ यही शिकवा आगोश में खिलते क्यूँ नहीं,
मुलाक़ात करते हो आए दिन मिलते क्यूँ नहीं.
"हर सुबह अंतिम और शाम आख़री हो सकती है,दो पल की ज़िंदगी, एक पल में बड़ी हो सकती है,