चाय सा इश्क़ किया है तुमसेसुबह शाम न मिले तो सिरदर्द सा करता है
चाय सा इश्क़ किया है तुमसे
सुबह शाम न मिले तो सिरदर्द सा करता है
कितना भी कह लूँ,कुछ बाकी रह जाता है lकितना भी पी लूँ,बिन साक़ी अधूरा रह जाता है l
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
हँसकर हर दुःख छिपाने की,
आदत है बड़ी मशहूर मेरी ,
लेकिन कोई हुनर काम नहीं आता,
जब इन होंठो पर किसी ख़ास का नाम आता है।