शांत मन समंदर कभी बहक जाता है,कुछ बूँद आँखों से छलक जाता है lबर्फ के पिघलने से सैलाब नहीं आती,आँसू से पत्थर भी पिघल जाता है l
ना कोई महल, ना सपना,ना कोई फूल छोड़ जाता हूँ,तुम्हारे नाम लिखें है कई ख़त, रोज एक छोड़ आता हूँ l
वो नदी की मीठी पानी,उस जैसा कोई अनमोल नहीं,समंदर में बहुत है पानी,पर वो उसका कोई मोल नहीं l
बन के रूह तेरे जिस्म मे उतार जाऊं तो अच्छा है,
किसी रात तेरी गोद में सर रख कर सो जाऊं,
उस रात की कभी सुबह ना हो तो अच्छा है
दिल-ए-आबाद का बर्बाद भी होना ज़रूरी है
जिसे पाना ज़रूरी है उसे खोना ज़रूरी है
अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
जब आ गए थे तो पल भर ठहर गए होते