जादुई साँप की भविष्यवाणी

जादुई साँप की भविष्यवाणी

एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था वो भिक्षा माँगकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था. एक दिन उसने सोचा कि जो भी मुझे भिक्षा मि मिलता उसे मेरे परिवार और बच्चों का पेट नहीं भरता है क्यों एक दिन नगर के राजा से चलकर कुछ सहायता के लिए निवेदन करते है. अगले दिन ही ब्राह्मण राजा से मिलने के लिए चल दिया. राजा के महल से पहले एक घना जंगल था ब्राह्मण उसी रास्ते से राजमहल की ओर जा रहा था. तभी उसे एक पेड़ के पास साँप दिखाई दिया. ब्राह्मण ने साँप को प्रणाम किया और उस साँप ने उस ब्राह्मण से कहा, मैं जानता हूँ आप राजा से आर्थिक सहायता माँगने जा रहे.

 मेरे पास एक भविष्य वाणी है अगर आप जाकर इसकी सूचना राजा को देंगे तब वो आपको उचित धन देंगे और याद रहे जो भी धन मिलेगा आप उसका आधा हिस्सा मुझे देंगे. ब्राह्मण राज़ी हो गया. साँप ने उसे कहा, राजा से जाकर कहना, इस साल अकाल पड़ने वाला है इसलिए वो उचित प्रबंध कर ले. ब्राह्मण राजमहल में पहुंचकर राजा को ये भविष्यवाणी बता दी. राजा ने उसे उचित धन देकर विदा कर दिया. ब्राह्मण रास्ते से लौट रहा तब उसने सोचा क्यों न राह बदलकर चलूँ नहीं तो साँप को धन का आधा हिस्सा देना हो और वो मार्ग बदलकर अपने घर चला गया. साँप की बात सही निकली और राज्य में अकाल पड़ा, लेकिन राजा को पहले ही ख़बर थी इसलिए उस ने प्रजा की खूब देखभाल किया. कई सालों बाद ब्राह्मण का धन ख़त्म हो गया और एक बार फिर राजा से मिलने के लिए चल देते है. रास्ते में फिर से साँप से मुलाक़ात होती है और वो साँप उन्हें एक और भविष्यवाणी बताता है. ब्राह्मण राजा के पास जाता है तब वो राजा से कहता राजन इस बार भंयकर युद्ध होने वाला इसलिए आप तैयारी कर लीजिये. राजा ब्राह्मण से बहुत प्रसन्न होते है और उसे इस बार अधिक धन देते है. ब्राह्मण के मन में एक बार फिर लालच आ जाता है लेकिन इस बार वो राह नही बदलता है और साँप के पास पहुँचने पर उसे डंडे से मारने लगता है. साँप बचकर बिल में छिप जाता है. उसी साल भयंकर युद्ध होता और राजा जीत जाता है. 

कई सालों बाद फिर ब्राह्मण का धन ख़त्म हो जाता है और एक बार फिर से उसी रास्ते से राजा के पास चल देता है. रास्ते में साँप फिर मिलता है और वो ब्राह्मण से बहुत ही विनम्रता से प्रणाम करता लेकिन ब्राह्मण उससे अपनी नज़रे चुराने लगता है. तब सांप फिर कहता है इस बार राजा से कहना कि अब धर्म की स्थापना होगी और हर कोई सही कार्य करेंगे. नेक और दया भाव से वो आपसे में एक दूसरे के प्रति काम करेंगे.ब्राह्मण राजा के पास पहुँच जाते, इस बार भी राजा से खूब धन लेकर चल देते है. राह में उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है और वो अपना पूरा धन लेकर साँप के पास पहुँच जाते है और उसने अपने ग़ुनाहों की माफ़ी माँगते है और उसके हिस्से का पूरा धन तीन बार का जोड़कर उसे देने लगते है. तब साँप कहता है, ब्राह्मण देव धर्म की स्थापना हो गई है और आप अपने कृत्य पर शर्मिंदा है. यही काफी है आप ये धन ले लीजिये. मुझे इसकी कोई आवश्कयता नहीं है. ये कहकर साँप वहाँ से गायब हो जाता है. 

ब्राह्मण वापस अपने घर आ जाता है और धर्म के साथ काम करने लगता है.