राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने क्यों किया देवराज इंद्र की पुत्री से विवाह?

राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने क्यों किया देवराज इंद्र की पुत्री से विवाह?

देवताओं और असुर के बीच युद्ध आदि काल से चलता आ रहा है. जबकि ये बात भी सत्य है कि देवता और असुर दोनों एक ही पिता की संताने है. लेकिन इसके बाद भी दोनों के बीच में भयंकर शत्रुता व्याप्त है. वो दोनों समय-समय एक दूसरे पर आक्रमण करने का मौका तलाशते रहते है. लेकिन राक्षस कुल में कुछ ऐसे भी महापुरुषों ने जन्म लिया है जिन्होंने इस शत्रुता को मिटने की कोशिश की है. जैसे प्रहलाद, विभीषण और राजा बाली. 


तो वहीं देवताओं और राक्षसों के बीच कुछ और भी संबंध बने. इन्हीं संबंधों में से एक सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग है गुरु शुक्राचार्य और देवराज इंद्र की पुत्री के विवाह का संबंध. जिसकी कहानी इस प्रकार है... 

एक बार दैत्यराज कालनेमि और देवताओं में युद्ध शुरू हो गया. इस भीषण महासंग्राम में असुरों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ. इसमें असुर पराजित होने लगे तब उन्होंने अपने गुरु शुक्राचार्य से सहायता मांगी. तब शुक्राचार्य ने भगवान शिव के पास संजीविनी मंत्र लेने के लिए चले गए. जब इंद्र को इस बात की ख़बर हुई तब वो शंकर जी से मिलने पहुँच गए. दोनों जब वहाँ पहुँचे तब उस समय भगवान शिव साधना में लीन थे तब इंद्र ने उनके सिराहने बैठकर प्रतीक्षा करने के बारे में सोचा और शुक्राचार्य ने शिव शम्भू के चरणों के पास बैठ गए. जब शंकर भगवान साधना से उठे तब उन्होंने शुक्राचार्य को सबसे पहले देखा और उनसे वहॉं आने का प्रयोजन पूछा. तब इंद्र ने बीच में बात काटते हुए कहा, महादेव पहले मैं यहाँ आया हूँ. तब भगवान शंकर को ज्ञात हुआ कि देवराज इंद्र भी यहीं है लेकिन उन्होंने कहा, देवराज मेरी दृष्टि सबसे पहले शुक्राचार्य पर पड़ी है इसलिए पहले शुक्राचार्य को बात कहने का मौका मिलेगा. शुक्राचार्य ने तुरंत भगवान शंकर से संजीवनी  मंत्र का वरदान मांग लिया. तब इंद्र ने कहा, इसी लिए मैं भी यहाँ आया हूँ. भगवान शंकर ने तब कहा यह मंत्र उसी को मिलेगा जो मेरी एक कठिन परीक्षा में पास होगा. शिव शंकर ने कहा, जो एक साल तक पीपल के पेड़ से लटककर सिर्फ पत्तियों के धुँए को पीकर मेरी आराधना पूर्ण कर लेगा उसे ही ये संजीवनी मंत्र मिलेगी. शुक्राचार्य ने परीक्षा स्वीकार कर लिया. जबकि इंद्र वहाँ से चले गए. शुक्राचार्य ने अपनी माता के आशीर्वाद लेकर तपस्या शुरू कर दिया. कई दिन और महीने बीत गए. इधर शुक्राचार्य की तपस्या पूर्ण होने वाली थी. तब देवराज इंद्र की पुत्री जयंती ने अपने पिता के कहने पर शुक्राचार्य की तपस्या भंग करने के लिए वो पाताल लोक आई. उन्होंने छुपकर उस पत्तियों में लाल मिर्च मिला दिया. लेकिन शुक्राचार्य ने अपनी  तपस्या नहीं थोड़ी. इस बात से भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने तुरंत शुक्राचार्य को संजीवनी मंत्र का वरदान दे दिया. 

इंद्र की पुत्री को अपने इस अपराध का बहुत पछतावा हुआ और इसके प्रायश्चित्त के लिए शुक्राचार्य से विवाह का प्रस्ताव रखा और शुक्राचार्य से शादी कर लिया.