अंधेर नगरी चौपट राजा, टेक सेर आलू, टेक सेर खाजा

अंधेर नगरी चौपट राजा, टेक सेर आलू, टेक सेर खाजा

एक बार एक साधु अपने दो शिष्यों, नारायणदास और गोवर्धनदास के साथ एक नगर के पास जा पहुंचे. उन्होंने उन दोनों से कहा, "बच्चा नारायणदास तुम दक्षिण दिशा से इस नगर में जाओ और गोवर्धनदास तुम उत्तर की दिशा से और नगर में जो भी भिक्षा मिले उसे लेकर आओ."

दोनों ने गुरूजी की आज्ञा मान कर नगर में गए, गोवेर्धनदास ने एक हलवाई की दुकान पर जाकर पूछा, " भाई ये खाजा क्या भाव दिया ?'' 

हलवाई ने जवाब दिया टेक सेर! गोवर्धनदास ने फिर उससे पूछा, " इस नगर का क्या नाम हैं ?'' उसने जवाब दिया अंधेर नगरी. 

अब गोवेर्धन दास ने भिक्षा में मिले पैसों से मिठाई खरीदकर वापस गुरूजी के पास जा कर सारी राम कहानी कह सुनाई. गुरूजी ने उसे इस नगर से वापस चलने के लिए कहने लगे. लेकिन उसने जाने से मना कर दिया. 

अब गोवर्धन दास यहीं रहने लगे और टके सेर मिठाई खा-खाकर तंदरुस्त हो गए. एक दिन महाराज के पास एक नया मुकदमा आया, जिसमें एक आदमी ने आकर महाराज से न्याय की फ़रियाद की. 

महाराज कल्लू बनिए के दुकान की दीवार गिर पड़ी जिससे मेरी बकरी दबकर मर गई. इसलिए आप न्याय कीजिये. महाराज ने तुरंत कल्लू बनिए को पकड़ कर लाने का आदेश दे दिया. इसके बाद कल्लू बनिया महल में हाजिर हुआ. क्यों बे बनिये इसकी बकरी कैसे मरी?

महाराज वो कारीगर का दोष हैं. उसने ऐसी कमजोर दीवार बनाई की वो गिर पड़ी. महाराज ने कारीगर को बुलवाया. क्यों कारीगर इसकी बकरी कैसे मर गई?  करिगा ने पूरा दोष चूने वाले पर लगा दिया और कहा की उसने चूना ही बहुत ख़राब बनाई जिससे दीवार गिरी और इसकी बकरी मर गई. राजा ने चुने वाले को बुलवाया. चुने वाले ने भिश्ती का नाम लिया अब वो आया. ऐसे ऐसे सभी ने अपना दोष दूसरे पर थोप दिया. ऐसे करते करते पूरा इलज़ाम कोतवाल पर लगाया गया और उसे फाँसी की सज़ा सुनाई गई. लेकिन फाँसी की रस्सी का फन्दा बड़ा हो गया और सिपाहियों ने गोवर्धन दास को पकड़ कर फाँसी पर चढ़ाने की तैयारी हो गई. चूँकि बकरी मरने की वजह से किसी को फाँसी पर चढ़ाना था इसलिए गोवर्धनदास फँस गए. गोवर्धन दास ने अपने गुरु जी को याद किया और वो वहां पर आ गए. गोवर्धन दास ने सारी आपबीती कह सुनाई. इसके बाद गुरूजी ने कहा, '' एक काम करों मुझे फाँसी पर चढ़ने दो क्योंकि आज के दिन जो फाँसी पर चढ़ेगा वो स्वर्ग जायेगा और इसलिए मुझे चढ़ने का मौका दो.'' 

अब दोनों में तकरार हो गई इतने में राजा आ गया और उसने इन दोनों की बात सुन ली.अच्छा तो ये  माज़रा हैं, राजा के  रहते कोई और स्वर्ग क्यों जायेगा मैं जाऊंगा स्वर्ग. इतना कहते ही वो फाँसी के फंदे को पाने गले में डाल कर खड़ा हो गया और जल्लादों ने उसके आदेश का पालन करते हुए उसे फाँसी पर चढ़ा दिया.