एक सवाल पूछती है मेरी आत्मा अक्सर, मैने दिल लगाया या जिन्दगी दांव पर!
एक सवाल पूछती है मेरी आत्मा अक्सर,
मैने दिल लगाया या जिन्दगी दांव पर!
सुनी थी सिर्फ हमने ग़ज़लों में जुदाई की बातें ;
अब खुद पे बीती तो हक़ीक़त का अंदाज़ा हुआ !!
उसने मोहब्बत, मोहब्बत से ज़्यादा की थी,
हमने मोहब्बत उस से भी ज़्यादा की थी,
वो किसे कहेंगे मोहब्बत की इन्तहा,
हमने शुरुआत ही इन्तहा से ज़्यादा की थी.
ज़िदगी जीने के लिये मिली थी,
लोगों ने सोच कर गुज़ार दी……
मेरे-तेरे इश्क़ की छाँव में… जल-जलकर!
काला ना पड़ जाऊ कहीं !
तू मुझे हुस्न की धुप का
एक टुकड़ा दे…!