अब ज़िंदगी तेरे दिल में गुजारनी है,तो मुझे ये गुनाह भी कबूल है,सज़ा साल, दो साल का मत रखनाताउम्र ही मेरी मोह्हबत का मूल है l
ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-करार,
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी।
मैंने भी किसी से प्यार किया था
उनकी रहो में इंतजार किया था
हमें क्या पता वो भूल ज्यांगे हमें
कसूर उनका नहीं मेरा ही था
जो एक बेवफा से प्यार किया था !!
सामने बैठे रहो दिल को करार आएगा,
जितना देखेंगे तुम्हें उतना ही प्यार आएगा।
वक़्त भी लेता है करवटें कैसी कैसी,
इतनी तो उम्र भी ना थी जितने सबक सीख लिए हमने..