तेरे खामोश होंठों पर मोहब्बत गुनगुनाती है
तू मेरी है मैं तेरा हूँ बस यही आवाज आती है।
ऐ बेदर्द… सब आ जातें हैं यूँ ही मेरी ‘ख़ैरियत’ पूछने…अगर तुम भी पूछ लो तो यह ‘नौबत’ ही न आए.
बड़े प्यार से तराशा था उस संगेमरमर कोबड़ा नाज़ था उसे अपने आप पर.एक दरार क्या पड़ीकिसीने मुड़ कर देखना तक गंवारा न समझा.
जिन फूलों को संवारा था
हमने अपनी मोहब्बत से,
हुए खुशबू के काबिल तो
बस गैरों के लिए महके।
वफा क्या होती है?
काश तुम जान जाती ...
ना हम, ना तुम अकेली होती ।