शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।
चाहत बन गये हो तुम या आदत बन गयेहो तुम हर सांस में यू आते जाते हो जैसेमेरी इबादत बन गये हो तुम।
चाहत बन गये हो तुम या आदत बन गये
हो तुम हर सांस में यू आते जाते हो जैसे
मेरी इबादत बन गये हो तुम।
कौन याद रखता हैं गुजरे हुए वक़्त के साथी कोलोग तो दो दिन में नाम तक भुला देते हैं |
चंदन की लकड़ी फूलों का हार,अगस्त का महीना सावन की फुहार,भैया की कलाई बहन का प्यार,मुबारक हो आपको रक्षा-बंधनका त्यौहार।