बहुत मुश्किल से करता हूँ,तेरी यादों का कारोबार,मुनाफा कम है,पर गुज़ारा हो ही जाता है...#गुलज़ार
न सोचा मैंने आगे,
क्या होगा मेरा हशर,
तुझसे बिछड़ने का था,
मातम जैसा मंज़र!
धूप भी खुल के कुछ नहीं कहती ,
रात ढलती नहीं थम जाती है.
सर्द मौसम की एक दिक्कत है ,
याद तक जम के बैठ जाती है....
मैं तमाम दिन का थका हुआ,
तू तमाम शब का जगा हुआ,
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर,
तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ।
जिस प्रभात से, परमात्मा का स्मरण हो जाये,
वह प्रभात, सुप्रभात हो जाता है।