जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी सेजो कहती है कहती है मुझ से मेरी ख़ामोशी
भोली सी अदा कोई फिर इश्क की जिद पर है,फिर आग का दरिया है और डूब के जाना है।
एक तुम ही मिल जाते बस इतना काफ़ी था,सारी दुनिया के तलबगार नहीं थे हम।
"खुशी में,महीनों की दूरी भी सह जाते है,नाराजगीं में, एक पल भी ना काट पाते है l"