अंदाज़ भी निराला है उनका
वो हो कर खफा मुझ से
मेरे गुमशुदगी की वजह पूछते हैं
छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है
यूं ज़ुल्फें खोल कर न रखा कर मेरी जान,
उलझ सा जाता हूँ इनमें जब भी देखता हूँ !!
बहुत चालाकी से तेरे गालों को चूम लेती हैं;
इन ज़ुल्फ़ों को भी तूने सिर पर चढ़ा रखा हैं !!
प्रेम सबकुछ सह लेता है,पर उपेक्षा नहीं सह सकता ।
क्या माँगू खुदा से तुझे,या तेरी परेशानियाँ माँगू lअब झुके सर सजदा को,रब से तेरी खुशियाँ माँगू l