जरा सा किस्सा था मैं,
तुमसे मिला, दास्तां हो गया!
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दो शब्दों में सिमटी है मेरी मुहब्बत की दास्तान,उसे टूट कर चाहा और चाह कर टूट गये।
ज़िद मत किया करो मेरी दास्तान सुनने की,
मैं हँस कर भी कहूँगा तो तुम रोने लगोगे।
ना किया कर अपने दर्द को शायरी में ब्यान ऐ नादान दिल,
कुछ लोग टूट जाते हैं इसे अपनी दास्तान समझकर।
ऐसी दास्तान छोड़ जाऊँगा अपनी जमाने में…
कि जमाने को जमाने लगेंगे मुझे भुलाने में…
किरदार और भी थे कई दास्तान-ए-ज़िन्दगी में,
सिर्फ तुम ही बने मोहब्बत ये बात कुछ और है!