गुरुर में इन्सान को
कभी इन्सान नहीं दिखता,
जैसे छत पर चढो तो अपना ही
मकान नहीं दिखता !!
मैंने उनका गुरूर कुछ इस कदर तोड़ दिया,
आँखों को चूमा उनकी, और होठों को छोड़ दिया.
तोड़ेंगे गुरुर इश्क का
और इस कदर सुधर जायेंगे,
खड़ी रहेगी मोहब्बत बीच रास्ते में
और हम सामने से गुजर जायेंगे !!
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
कद में छोटे हो, मगर लोग बड़े रहते हैं.