तेरे हुस्न को परदे की ज़रुरत ही क्या है,कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद…
आग तो हम भी लगा दें दिलों में अपनी शायरी से…
पर डरते हैं कि कहीं तुमसे इश्क न हो जाए हमें…
दायरों में बंद हमारा प्यार,जाने कब तक हमें तड़पायेंगेहोते पंक्षी तो कोई बंदिश ना होती,पंख हमारे रोज हमें मिलवाते l
बर्बाद कर दिया मुझे,
तेरी इन मस्त निगाहों ने,
सौ साल जी लेते,
अगर दीदार-ऐ-हुस्न तेरा ना किया होता…
तुम्हारे मिलने के बाद नाराज़ है रब्ब मुझसे,
क्योंकि मैं उनसे अब और कुछ मांगता ही नहीं
नज़रें मिल जाएं तो प्यार हो जाता है,
पलकें उठ जाएं तो इज़हार हो जाता है,
ना जाने क्या कशिश है आपकी चाहत में,
कि कोई अनजान भी...
हमारी ज़िन्दगी का हक़दार हो जाता है।