भगवती चरण वर्मा की प्रसिद्ध कविता 'तुम अपनी हो, जग अपना है'

Famous Poem Of Bhagwati Charan Vermaa Tum Apni Ho, Jag Apna Hai

भगवती चरण वर्मा हिंदी साहित्य के उच्चकोटि के लेखों में से एक हैं. हिंदी साहित्य में चित्रलेखा और भूले बिसरे चित्र जैसे दो बेहतरीन उपन्यास देने का योगदान भगवती चरण वर्मा को जाता हैं. 

इन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक के साथ-साथ कविता के क्षेत्र में भी अपना एक अलग मुकाम बनाया हैं. इनकी लिखी कविता 'तुम अपनी हो, जग अपना है' हिंदी की फेमस कविताओं में गिनी जाती हैं. इसलिए जरूर पढ़िए वर्मा जी की वो बेहतरीन कविता..... 

तुम अपनी हो, जग अपना है

किसका किस पर अधिकार प्रिये

फिर दुविधा का क्या काम यहाँ

इस पार या कि उस पार प्रिये

देखो वियोग की शिशिर रात

आँसू का हिमजल छोड़ चली

ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस

दिन का रक्तांचल छोड़ चली।

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

जीवन-सरिता की लहर-लहर,

मिटने को बनती यहाँ प्रिये

संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने

हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये।

पल-भर तो साथ-साथ बह लें,

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

आओ कुछ ले लें औ' दे लें।

हम हैं अजान पथ के राही,

चलना जीवन का सार प्रिये

पर दुःसह है, अति दुःसह है

एकाकीपन का भार प्रिये।

पल-भर हम-तुम मिल हँस-खेलें,

आओ कुछ ले लें औ' दे लें।

हम-तुम अपने में लय कर लें

उल्लास और सुख की निधियाँ,

बस इतना इनका मोल प्रिये

करुणा की कुछ नन्हीं बूँदें

कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये।

सौरभ से अपना उर भर लें,

हम तुम अपने में लय कर लें।

हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।

जग के उपवन की यह मधु-श्री,

सुषमा का सरस वसन्त प्रिये

दो साँसों में बस जाय और

ये साँसें बनें अनन्त प्रिये।

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मुरझाना है आओ खिल लें,

हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।

चलना है सबको छोड़ यहाँ

अपने सुख-दुख का भार प्रिये,

करना है कर लो आज उसे

कल पर किसका अधिकार प्रिये।

है आज शीत से झुलस रहे

ये कोमल अरुण कपोल प्रिये

अभिलाषा की मादकता से

कर लो निज छवि का मोल प्रिये।

इस लेन-देन की दुनिया में

निज को देकर सुख को ले लो,

तुम एक खिलौना बनो स्वयं

फिर जी भर कर सुख से खेलो

पल-भर जीवन, फिर सूनापन

पल-भर तो लो हँस-बोल प्रिये

कर लो निज प्यासे अधरों से

प्यासे अधरों का मोल प्रिये।

सिहरा तन, सिहरा व्याकुल मन,

सिहरा मानस का गान प्रिये

मेरे अस्थिर जग को दे दो

तुम प्राणों का वरदान प्रिये।

भर-भरकर सूनी निःश्वासें

देखो, सिहरा-सा आज पवन

है ढूँढ़ रहा अविकल गति से

मधु से पूरित मधुमय मधुवन।

यौवन की इस मधुशाला में

है प्यासों का ही स्थान प्रिये

फिर किसका भय? उन्मत्त बनो

है प्यास यहाँ वरदान प्रिये।

देखो प्रकाश की रेखा ने

वह तम में किया प्रवेश प्रिये

तुम एक किरण बन, दे जाओ

नव-आशा का सन्देश प्रिये।

अनिमेष दृगों से देख रहा

हूँ आज तुम्हारी राह प्रिये

है विकल साधना उमड़ पड़ी

होंठों पर बन कर चाह प्रिये।

मिटनेवाला है सिसक रहा

उसकी ममता है शेष प्रिये

निज में लय कर उसको दे दो

तुम जीवन का सन्देश प्रिये।