भालू और कठफोड़वे की लड़ाई

सुंदरवन जंलग में एक दिन भालू मोतिमल और कठफोड़वे झोकूँचंद मखमल के बीच लड़ाई शुरू हो गयी, और धीरे धीरे ये लड़ाई इतनी बढ़ी की दोनों ने युद्ध का एलान कर दिया. युद्ध के लिए दो दिन बाद का दिन और नदी के पास वाला मैदान तय किया गया. सभी जानवर एक तरफ और सभी पक्षियां, कीड़े सब एक तरफ हो गए. युद्ध की तैयारी दोनों ख़ेमों में ज़ोरो शोरों से शुरू हो गई, ऐसा लग रहा था की तीसरा विश्व युद्ध होने वाला हैं. 

उसी रात को कठफोड़वे ने अपने सेनापति गुलाबचंद मच्छर दिलेर सिंह को शत्रु के ख़ेमें की हलचल जानने के लिए भेज दिया. मच्छर जब इधर आया तो उसने देखा कि भालू का महामंत्री लोमड़ी अपनी रणनीति बना रही थी, 

"तुम लोग मेरे इशारे का इंतज़ार करना और  जैसे ही मैं अपना लाला पूंछ हिलाना शुरू कर दूँ तुम सब समझ लेना की ख़तरा हैं." 

मच्छर ये ख़बर लेकर वापस आ गया और अगले दिन तय समय और दिन पर युद्ध आरम्भ हो गया. लोमड़ी आगे-आगे और बाकि सारे जानवर उसके पीछे-पीछे चल रहे थे, पूरा जंगल पशु-पक्षियों के गूंज से दहल उठा. तभी अचानक एक छोटी सी चिड़िया आकर लोमड़ी की पूंछ पर चोंच मरने लगी और उसे हटाने के लिए लोमड़ी ने अपनी पूंछ को हिलाना शुरू कर दिया जिसे देखते ही जानवरों ने समझा की जरूर आये ख़तरा हैं और वो वहीं से भाग गए. लोमड़ी अकेली पड़ गई और  सभी चिड़ियों के उसपर धावा बोल दिया. 

हम अगर विवेक और धैर्य से काम करेंगे तब मुश्किल से मुश्किल परिस्थितयों का भी सामना कर सकते हैं.