कब और क्यों भगवान शिव ने अपने गले में नाग धारण किया और इसका क्या नाम है?

कब और क्यों भगवान शिव ने अपने गले में नाग धारण किया और इसका क्या नाम है?

हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार 33 करोड़ देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता हैं. जिनकी एक विशेष प्रकार की वेषभूषा है, वो भिन्न-भिन्न प्रकार के साजों-श्रृंगार करती है. जैसे भगवान श्रीहरि विष्णु को पीताम्बर कहा जाता है क्योंकि वो हमेशा पीला वस्त्र ही पहनते है, जबकि ब्रह्मा और इंद्र श्वेत वस्त्र धारण करते है. हनुमान जी भगवा और माँ काली काले. लेकिन भगवान शंकर एक ऐसे देवता है जिनकी वेशभूषा सबसे अलग और हैरान करने वाली है और यहीं नहीं वो अन्य देवतों की तरह महलों में नहीं रहते हैं. 

नाग राज वासुकी ने समुंद्र मथन

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर बाघ की छल पहनते है, भस्म लगते है, मस्तक पर गंगा और चंद्रमा को धारण किये हुए है साथ ही साथ उन्होंने अपने गले में एक नाग को भी धारण किया हैं. जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते है कि आखिर ये भगवान शिव ने क्यों और कब किया तथा उस वो नाग कौन है? उसका नाम क्या है? तो आइए जानते है इसके पीछे की पूरी कहानी... 

प्रजापति दक्ष की पुत्री कद्रू की शादी महर्षि कश्यप से हुई थी, कश्पय ऋषि अपनी पत्नी के सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें एक वरदान माँगने के लिए कहा. तब कद्रू ने कहा स्वामी मैं हज़ार शक्तिशाली पुत्रों की माता बनना चाहती हूँ. तब ऋषि कश्पय ने उन्हें वरदान दे दिया और उन्होंने कई सारे पुत्रों को जन्म दिया. उनके सबसे बड़ा पुत्र का नाम शेषनाग है जिनके पास हज़ार सर है और उनका अंत नहीं हो सकता इसलिए उन्हें अनंत भी कहते है. वो भगवान विष्णु के बहुत बड़े उपासक हुए और अपने छोटे भाई वासुकी को नागलोक का राजा बनाकर खुद भगवान विष्णु की शरशयार बनकर उनके साथ बैकुंठ के छीर सागर में चले गए. 

नाग राज वासुकी ने समुंद्र मथन के समय भगवान विष्णु के कहने पर मंदार  पर्वत पर बंधन की तरह लिपट गए और दोनों तरफ सड़े मथने की वजह से बहुत घायल हो गए. साथ ही जब भगवान शिव ने समुंद्र मंथन से हलाहल विष निकला तब  साँपों ने उसे भगवान शिव के साथ ही धारण किया. इस प्रकार की असीम भक्ति को देखने के बाद भगवान शिव ने वासुकी नाग को अपने गले में आभूषण की तरह धारण कर लिया. 

कहा जाता है वासुकी नाग ही वो नाग है जिनके पास नागमणि है और सबसे पहले भगवान शिव के लिङ्गा अवतार की पूजा साँपों और नागों ने शुरू की उसके बाद ही नागों की भक्ति से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होकर उन्हें अपने अनन्य भक्तों में शामिल कर लिया.