भारतीय युद्ध के इतिहास में जब एक तरबूज के लिए हो गयी थी खूनी जंग, क्या थी मतीरे की राड़ की कहानी

Matire Ki Rad: Thousand Of Bikaner And Nagaur Soldiers Were Died For Watermelon

दुनिया के इतिहास में एक से बढ़कर एक भयंकर युद्ध लड़े गए. जिसमें लाखों-करोड़ों की संख्या में लोगों ने अपनी जान गँवा दी. दुनिया में दो भयंकर विश्व युद्ध के अलावा और भी कई सारे भयंकर और विनाशकारी युद्ध लड़े गए. 

जिसका परिणाम काफी भयावाह और विध्वंशक था. कई राजाओं ने अपने साम्राज्य को बढ़ाने के इरादे से इतिहास में युद्ध किये. लेकिन भारत की धरती पर एक बार सिर्फ एक फल को लेकर भयंकर खूनी जंग लड़ाया गया था. जिसे इतिहास में मतीरे की राड़ के नाम से जाना जाता है. जिसमें लाखों सैनिक और योद्धा मौत के घाट उतार दिए गए. 

1644 ईस्वी में लड़ा गया ये युद्ध 

भारत में सिर्फ एक तरबूज के लिए 1644 ईस्वी में ये विनाशकारी युद्ध लड़ा गया था. जिसे युद्ध इतिहास में मतीरे की राड़ के नाम से जाना जाता है. ये युद्ध राजस्थान में लड़ा गया था. राजस्थान के कई इलाकों में तरबूज को मतीरे के नाम से भी जाना जाता है. साथ ही राड़ का अर्थ लड़ाई/झगड़े से है. इसलिए इसे इस नाम से जाना गया. आज से तकरीबन 376 साल पहले ये युद्ध लड़ा गया था. इस अनोखे युद्ध में पहली बार दो रियासते एक तरबूज के लिए आपस में लड़ मरे थे. 

war for watermelon

एक तरबूज कैसे बन गया युद्ध का कारण?

राजस्थान के दो गाँव सीलवा और जाखणियाँ वहां की रियासतों बीकानेर और नागौर के सीमा में आते थे. दोनों गांव इन रिसायतों के साथ सीमा साँझा करते थे. एक बार बीकानेर की सीमा पर एक तरबूज का पेड़ उग आया. जिसका फल नागौर रियासत के सीमा में लगा. जिसके बाद ये ही एक तरबूज का फल दोनों रियासतों के बीच इस खूनी जंग का कारण बन गया.

thousand of solider were killed for watermelon

फल के अधिकार को लेकर शुरू हुआ था जंग 

इसके बाद सीलवा गांव के लोगों के अनुसार पेड़ उनके राज्य में था इसलिए फल भी उनका होगा. जबकि नागौर के लोगों के अनुसार फल उनकी सीमा में ऊगा था. इसलिए उस पर उनका अधिकार था. इसी अधिकार के विवाद के लिए दोनों रियासतों में भीषण युद्ध शुरू हो गया. 

bikaner and nagaur  were fight for watermelon

रियासते के राजाओं को युद्ध की भनक तक नहीं थी 

जब ये भयंकर युद्ध शुरू हुआ तो उस समय दोनों रियासत के राजाओं को इसकी कोई जानकारी नहीं थी. इस युद्ध का नेतृत्व दोनों राज्यों के सेनापतियों सिंघवी सुखमल और रामचंद्र मुखिया ने किया था. इस बीकानेर के शासक करणसिंह एक अभियान पर गई हुए थे और नागौर के राजा राव अमरसिंह मुगल साम्राज्य की सेवा में तैनात थे. जब तक दोनों राजाओं को युद्ध की जानकारी मिलती. तब तक इन युद्ध शुरू हो गया था और इस युद्ध में बीकानेर की जीत हुई थी. साथ ही इस युद्ध में हजारों सैनिकों की मौत हो गयी थी.