ये कैसा सरूर है तेरे इश्क का मेरे मेहरबाँ,
सँवर कर भी रहते हैं बिखरे बिखरे से हम!
नींद चुराने वाले पूछते हैं सोते क्यों नही,इतनी ही फिक्र है तो फिर हमारे होते क्यों नही।
नहीं ‘मालूम ‘हसरत है या तू मेरी मोहब्बत है,बस इतना जानता हूं कि मुझको तेरी जरूरत है।
पहले भी रहा,और ये कुछ तुझ्से मिला हैसरमाया-ए-ग़म तेरी मुहब्बत का सिला हैहो दिल जो परेशाँ, यहाँ होता है तमाशामिल जाए अगर चैन तो काहे का गिला है