आरज़ू के दीए दिल में जलते रहेंगे,
मेरी आँखों से आंसू निकलते रहेंगे,
दिल में रौशनी तो करो तुम शमा बन के,
मोम बनकर हम यूं ही पिघलते रहेंगे।
“मेरे इश्क में दर्द नहीं था पर दिल मेरा बे दर्द नहीं था,
होती थी मेरी आँखों से नीर की बरसात,
पर उनके लिए आंसू और पानी में फर्क नहीं था ”!
ऐ बेदर्द… सब आ जातें हैं यूँ ही मेरी ‘ख़ैरियत’ पूछने…अगर तुम भी पूछ लो तो यह ‘नौबत’ ही न आए.
बोलो है कोई वकील ऐसा इस जहान में
जो हारा हुआ इश्क जीता सके मुझको
ना छेड किस्सा-ए-उल्फत, बडी लम्बी कहानी है,
मैं ज़माने से नहीं हारा, किसी की बात मानी है,,,,,,।।