काश ! कोई इस रात की शहर रोक लेता ,काश ! आज कोई मुझे अपने घर रोक लेता l
इत्तेफाक से तो नहीं,
हम दोनों टकराये
कुछ तो साजिश
खुदा की भी होगी
कौन याद रखता हैं गुजरे हुए वक़्त के साथी कोलोग तो दो दिन में नाम तक भुला देते हैं |
नींद सोती रहती है हमारे बिस्तर पे,और हम टहलते रहते हैं तेरी यादों में।
ज़ुल्म इतना ना कर के लोग कहे तुझे दुश्मन मेरा…!!
हमने ज़माने को तुझे अपनी “ जान ” बता रक्खा है…!!