देखो फिर से रात आ गयी गूड नाईट कहने की बात याद आ गयी
बैठे थे गुम सुम होकर चाँद को देखा तो तुम्हारी याद आ गयी ।
शुभ रात्रि
बात वफ़ाओ की होती, तो कभी न हारते,
बात नसीब की थी, कुछ ना कर सके।
एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ,
बाहर शांत हूँ, अंदर तूफान रखता हूँ,
रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ,
दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ।
उसने महबूब ही तो बदला है फिर ताज्जुब कैसा ???
दुआ कबूल ना हो तो लोग खुदा तक बदल लेते है !!!
इस दिल को अगर तेरा एहसास नही होता,
तू दूर भी रह कर के यूँ पास नही होता,
इस दिल ने तेरी चाहत कुछ ऐसे बसा ली है,
एक लम्हा भी तुझ बिन कुछ खास नही होता!!