याद है हमें हमारा वो बचपन,
वो लड़ना, वो झगड़ना और वो मना लेना,
यही होता है भाई-बहन का प्यार,
और इस प्यार को बढ़ाने आ रहा है
रक्षाबंधन का त्योहार।
काश तकदीर भी होती किसी जुल्फ की तरह…
जब जब बिखरती संवार लेते…
दूर हो जाने की तलब है तो शौक से जा…
बस याद रहे की मुड़ कर देखने की आदत इधर भी नही…
तकदीर के हाथों खुद को में जोड़ना नहीं चाहता,
मेरे दो हाथो का होसला में तोडना नहीं चाहता,
मौसम की तरह बदल जाती ये हाथो की लकीरें,
बंद मुट्ठी मेरी हरगिज़ मैं खोलना नहीं चाहता।
आपकी पलकों पर रह जाये कोई!
आपकी सांसो पर नाम लिख जाये कोई!
चलो वादा रहा भूल जाना हमें!
अगर हमसे अच्छा दोस्त मिल जाये कोई