“अपनों को याद करना प्यार हैं,
गैरों का साथ देना संस्कार हैं,
दुश्मनो को माफ करना उपकार हैं,
और आप जैसे दोस्तों को परेसान करना जन्मसिद्ध अधिकार हैं.”
तूने रुख से नक़ाब क्या उठाया,
कम्बखत दिल मुँह को होने लगा,
शर्मा कर , सितारे हैं छुपने लगे,
महताब बादलों से जो निकलने लगा
बिना कुछ किये ज़िन्दगी गुज़ार देने से कहीं अच्छा है
ज़िन्दगी को गलतियां करते गुज़ार देना
ऐ बेदर्द… सब आ जातें हैं यूँ ही मेरी ‘ख़ैरियत’ पूछने…अगर तुम भी पूछ लो तो यह ‘नौबत’ ही न आए.
खुद नहीं जानते कितनी प्यारे हो आप,
जान हो हमारी पर जान से प्यारे हो आप,
दूरियों के होने से कोई फर्क नही पड़ता,
कल भी हमारे थे और आज भी हमारे हो आप।