तेरे पास में बैठना भी इबादत
तुझे दूर से देखना भी इबादत …….
न माला, न मंतर, न पूजा, न सजदा
तुझे हर घड़ी सोचना भी इबादत….
खाली कागज़ पे क्या तलाश करते हो?एक ख़ामोश-सा जवाब तो है।डाक से आया है तो कुछ कहा होगा"कोई वादा नहीं... लेकिनदेखें कल वक्त क्या तहरीर करता है!"या कहा हो कि... "खाली हो चुकी हूँ मैंअब तुम्हें देने को बचा क्या है?"सामने रख के देखते हो जबसर पे लहराता शाख का सायाहाथ हिलाता है जाने क्यों?कह रहा हो शायद वो..."धूप से उठके दूर छाँव में बैठो!"सामने रौशनी के रख के देखो तोसूखे पानी की कुछ लकीरें बहती हैं"इक ज़मीं दोज़ दरया, याद हो शायदशहरे मोहनजोदरो से गुज़रता था!"उसने भी वक्त के हवाले सेउसमें कोई इशारा रखा हो... याउसने शायद तुम्हारा खत पाकरसिर्फ इतना कहा कि, लाजवाब हूँ मैं!
जब कोई पटाखा थोडा सा जलकर फुस्स हो जाता है तो उसे पैर से कुचल कर कुछ लोग ऐसे फील लेते है जैसे टाइम बम defuse करके दुनिया को बचा लिया हो....
ना दूर रहने से रिश्ते टूट जाते हैं
ना पास रहने से जुड़ जाते हैं
यह तो एहसास के पक्के धागे हैं
जो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं
डॉक्टर-कल रात को क्या खाया था..??लड़का-बर्गर, पिज़्ज़ा और कोक..डॉक्टर-देखो ये फेसबुक नही है सच बताओ...लड़का- जी लौकी....