“तुमने समझा ही नहीं और ना समझना चाहा,
हम चाहते ही क्या थे तुमसे “तुम्हारे शिवा।”
किसी ने खत में लिखा है "ताबिश"यहाँ कुछ दिन से बारिश हो रही है ।
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ सेतेरी आंखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरीलोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे l