है पेट की आग कुछ ऐसी ,दो रोटी से कहाँ बुझा पाता हूँ lघुमता हूँ दर-दर कुछ इस तरहअपने घर पर मेहमान हो जाता हूँ l
क्या तुम समझ जाओगी,क्या मैं समझा पाउँगा lइसी द्वन्द में जब रहता हूँ,कहते कहते भी,तभी चुप रहता हूँ l
"कोई गीत ओंठो पे, ठहर जाती है,फिर तेरी याद बहुत आती है,तेरे हाथो के तरफ, मेरे हाथो का सफऱ,अधूरी है, देखो!पूरी ही नहीं हो पाती है l"
लिपट जाओ एक बार फिर गले हमारे,
कोई दीवार न रहे बीच हमारे तुम्हारे,
लिपट जाती जरूर अगर ज़माने का दर न होता,
बसा लेती मैं तुमको अगर सीने में कोई घर होता..
Yaado k jungle me tab tak firta hu
Jab tak pair lahu luhan nahi ho jate..
बात वफ़ाओ की होती, तो कभी न हारते,
बात नसीब की थी, कुछ ना कर सके।